8 अक्टूबर 1936:

हमारी पीढ़ी के सबसे महान कथाकार ने आज सुबह अंतिम सांस ली। हमारे प्रिय लेखक ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का अनमोल खजाना हमें देने के बाद, अपनी शाश्वत यात्रा के लिए प्रस्थान किया।

महान लेखकों और कई आम लोगों ने शोकसभा में उनके अंतिम दर्शन करने के लिए शिरकत की।

कुछ ही मिनट पहले, उनकी पत्नी ने मुझे अपने जीवन से बहुत ही मार्मिक और प्रेरक घटना सुनाई।

यह उस समय की बात है जब वे शिक्षा विभाग के उप-निरीक्षक थे। एक बार निरीक्षक ने निरीक्षण के लिए अपने स्कूल का दौरा किया। प्रेमचंद ने उन्हें ख़ुशी से स्कूल दिखाया। लेकिन अगले दिन जब प्रेमचंद अपने घर पर थे और निरीक्षक की गाड़ी उनके घर के सामने से गुज़री, तो प्रेमचंद उनका अभिवादन करने के लिए नहीं उठे। अपमानित, निरीक्षक ने उन्हें बुलाया और पूछा कि उन्होंने अभिवादन न करके उनका अपमान क्यों किया।

प्रेमचंद ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “मैं अपने स्कूल में एक गुलाम हूं, लेकिन मैं अपने घर पर राजा हूं।”

ऐसे अद्भुत लेखक और एक सांसारिक व्यक्ति को खोना आने वाली पीढ़ियों के लिए और समग्र रूप से हिंदी साहित्य के लिए एक भयानक नुकसान होगा!

आज का परिदृश्य :

जब मैं हिंदी या हिंदुस्तानी (हिंदी और उर्दू) साहित्य के विषय में किसी से पूछती हूँ, तो वे लोगों बहुत नाक-भौं सिकोड़ते हैं और अवमानना ​​के साथ जवाब देते हैं, “हिंदी इतनी पुरानी है” या, “ऊ! आज की तारिख में हिंदी कौन पढता है? “

मेरे लिए, हिंदी साहित्य हमेशा से एक प्रकार से आत्मीय और आकर्षक रहा है जैसा अंग्रेजी कभी नहीं हो सकती। इस एहसास में एक बहुत बड़ा योगदान मुंशी प्रेंचन्द का है।


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प्रेमचंद का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्होंने बाद में कलम नाम प्रेमचंद को अपनाया और इस नाम से अपनी अधिकांश रचनाएँ प्रकाशित कीं। इसके अलावा, उपसर्ग ‘मुंशी’ उन्हें सम्मान स्वरुप उपाधि दी गयी थी।

प्रेमचंद स्वतंत्रता-पूर्व युग में बड़े हुए और स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी और सक्रिय भागीदार थे।

वे एक सराहनीय लेखक थे जिन्होंने एक दर्जन उपन्यास, 250 लघु कथाएँ और कई निबंध लिखे और साथ ही कई विदेशी रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया।

उनकी रचनाएँ कालजयी हैं, जो 8 दशक पहले जनता के लिए प्रासंगिक थी और आज भी।

मुझे याद है कि एक बच्चे के रूप में प्रेमचंद की कुछ कहानियाँ पढ़ना। मेरी याद मुझे बताती है कि मैं कहानियों के कठिन स्वभाव के कारण मैं पूरे 5-6 मिनट तक स्तब्ध और अवाक रह जाया करती थी। और वह बात आज तक वैसी ही है।

उनकी रचनाओं ने समाज में व्याप्त दुर्भाग्यपूर्ण कुरीतियों को दूर किया।

उनका उपन्यास ‘गोदान’ लगभग हर किसी के दिल में है। उनकी कुछ प्रचलित कहानियों में शामिल हैं – ‘सद्गति ’, ‘कफन’, ‘ईदगाह ’, ‘पूस की रात’।

इस महान लेखक की कृतियां कभी भी फैशन से बाहर नहीं हुई और न ही वे निकट भविष्य में अपना अस्तित्व खोएंगी। आज हम उनके कामों को पढ़ते हैं और वह सारी कहानियां आज भी प्रसंगीक हैं।


Image Sources: Google Images

Sources: NDTV IndiaBharat DarshanNavbharat Times

Written Originally In English By: @Rhetorician_rc

Translated In Hindi By: @innocentlysane


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